Vol. 9, Issue 2
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Vol.9, Issue 2

SHODH SANCHAYAN

 

Vol. 9, Issue. 2, 15 Jul, 2018

ISSN  2249 – 9180 (Online)

Bilingual (Hindi & English)
Half Yearly

Print & Online

Dedicated to interdisciplinary Research of Humanities & Social Science

An Open Access INTERNATIONALLY INDEXED PEER REVIEWED REFEREED RESEARCH JOURNAL and a complete Periodical dedicated to Humanities & Social Science Research.

मानविकी एवं समाज विज्ञान के मौलिक एवं अंतरानुशासनात्मक शोध पर  केन्द्रित (हिंदी और अंग्रेजी)

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Index/अनुक्रम

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शासक जाति की भाषा ही प्रायः वहाँ की राजभाषा के पद पर विभूषित होती है। हिंदी के साथ दुर्भाग्य यह रहा कि यह स्वभाव से लोक भाषा रही है और स्वतंत्रयोत्तर भारत में लंबे संघर्ष के बाद राजभाषा के रूप में किसी प्रकार से संविधन में स्थान प्राप्त कर सकी। विश्व क्षितिज पर प्रयोगकर्ताओं की संख्या के आधर पर यह लोक के समीप होने के कारण दुनिया में प्रथम पाँच में स्थान पा रही है किंतु राजनम में हिंदी की विकासयात्रा अभी भी असंतोषजनक है। यह शोध आलेख राजभाषा के रूप में हिंदी की विकासयात्रा का एक अन्वेषणात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

भारत में जल संचयन की पुरानी प्रणालियों और परम्पराओं का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। प्राचीन अभिलेखों में जल स्रोतो को पोषित करने के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं। हड़प्पा नगर की खुदाई से लेकर विभिन्न काल खण्डों में जल संचयन व प्रबन्धन व्यवस्था एवं प्राचीन काल में जल स्रोतो को पल्लवित एवं पोषित करने के लिए मानवीय प्रयासों की विस्तृत चर्चा शोधपत्र के माध्यम से की गई है।

For the sustenance of quality teaching and search of new knowledge a focused training especially on research methodology and related software is an urgent need of the entire academic world. System saves time, energy and money but one cannot be in a system if he or she does not know the exact process of doing things. This research paper is an attempt to find the ground reality of the narration. research paper used primary data of a workshop which was organized by APS University Rewa and sponsored by ICSSR New Delhi. Analysed data concludes that such type of workshop should be organized on regular basis because it contributes a lot in improving the efficiency of participants in all respect.

Small and medium enterprises (SMEs) have made noteworthy participation towards industrial growth, manufacturing, export and employment creation particularly at the low-skill level. The movement to International Financial Reporting Standards (IFRS) being the global benchmark in accounting standards in gaining momentum with about 100 countries already moving to IFRS as the standard (or at least have converged very close to IFRS). In EU, IFRS is mandatory since 2005. In 2007 China adopted IFRS across the country is taking place rapidly to bring about accounting quality improvement through a single set of standards for financial reporting. The IFRS was issued by International Accounting Standards Board (IASB). All major economies have established timelines to converge with or adopt the IFRS. The adoption of the IFRS surely will ensure uniformity, comparability, and reliability of the financial reporting across the world. The intent of the study is to investigate features of adoption of IFRS and to address issue and challenges while adopting IFRS for small and medium scale enterprises in India and the context of IFRS in Indian Scenario. The paper also identifies benefits for small and medium scale enterprises through adoption of IFRS and to make comparison between India GAAP framework with IFRS for small and medium enterprises.

कृष्ण बलदेव वैद समसामयिक युग के एक प्रमुख यथार्थवादी उपन्यासकार हैं। ये साहित्य में यथार्थ के चित्रण को उतना ही आवश्यक मानते हें, जितना सामान्य जीवन में। इसी कारण इन्होंने अपने उपन्यासें में समसामयिक समाज, युग एवं परिवेश के यथार्थ का स्वाभाविक एवं सजीव चित्रण किया है। यहाँ पर इन्होंने मुख्यतः घोर गरीबी, भुखमरी, अभावग्रस्तता, मद्यपानता, भिक्षावृत्ति, वृद्धावस्था की विवशताएँ, एकाकीपन एवं अजनबीपन, अति कामुकता एवं असामाजिक काम-संबंध, पारस्परिक विद्वेष एवं हिंसा की वृत्ति, धर्मांधता, दुर्गंध, मल-मूत्र जैसे अनेक यथार्थों का चित्रण किया है। इनके उपन्यासों में चित्रित यह यथार्थ काल्पनिक या सुना-सुनाया नहीं है अपितु लेखक द्वारा स्वयं देखा, भोगा और अनुभव किया हुआ है, इसीलिए यह अधिक स्वाभाविक, विश्वसनीय और वास्तविक लगता है। कृष्ण बलदेव के उपन्यासों में चित्रित यह यथार्थबोध समाज के यथार्थ को महिमामण्डित करने के बजाए एक कारूणा और उससे मुक्ति की आकांक्षा हेतु छटपटाहट को जन्म देता है।

The present action research was conducted to enhance the learning skills among Pre-service teachers. Thirty- three Pre-service teachers enrolled in B.Ed. programme of Regional Institute of Education, Bhopal participated in the action research. The interactive group activities were used as intervention. An observation rubric was used to assess the level of learning skills. The result reflected overall level of learning skills among Pre-service Teachers at exemplary level and proficient level were 26.92% and 52.37% respectively during the interactive group activity which reveals that the interactive group activities have promoted the learning skills among Pre-Service teachers. The problems encountered by the researchers were also resolved by using the activities. Learning skills are a set of skills used in the process of acquiring new knowledge and support the learning process. The 21st-century learning skills are core competencies such as creativity, critical thinking, communication, collaboration, and Information Media &Technology Skills whose acquisition enhances the learners’ gaining, processing and assimilation of new knowledge as well as its application in real world. Paradigm shift in pedagogical processes is required to inculcate these learning skills among learners.

ऐसी ही धरोहरों में एक है जयपुर स्थित पुंडरिक जी की हवेली। अपनी जयपुर यात्र के दौरान मुझे इस हवेली में घूमने और इसके द्वारा जयपुर के सवाई राजवंश की राज परंपराओं को जानने का अवसर मिला जिसके लिये मैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के राजस्थान मंडल की आभारी हूँ। राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर अपनी ऐतिहासिक विरासतों के लिये प्रसिद्ध है। जयपुर के सवाई राजवंश के राजा जय सिंह द्वारा संस्थापित जयपुर को 1727 ई0 में नये स्वरूप में बसाया गया था। वर्तमान में ये नगरी अपनी ईमारतों के रंग के कारण पिंक सिटी के नाम से भी जानी जाती है। यहां पर ऐतिहासिक महत्व की बहुत सी धरोहरें हैं। यह धरोहरें राजस्थान के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास का वैभव ही नहीं वहाँ की उच्चतम कला विधाओं का ज्ञान रखने वाले कलाकारों की ज्ञान पराकाष्ठा का भी नमूना पेश करते हैं। जयपुर, अजमेर, उदयपुर और जोधपुर जैसे शहरों में ऐसे ही ऐतिहासिक धरोहरों के अवशेष बिखरे पडे हैं जो अपने वास्तु और कला विधा के कारण देश-विदेश में अपनी आभा को बनाये हैं।

This paper intends to throw light upon the ethereal bond which Mahatma Gandhi and Srimad Rajchandra shared with each other and how this bond contributed into the spiritual and philosophical leanings and evolution of Mahatma Gandhi.    Rajchandra (1867-1901), a great Jain poet, philosopher, reformer and a spiritual dignitary, is in Gujarati also popularly hailed as, ‘Mahatma No Mahatma’ (‘Mahatma’s Mahatma’), i.e. the spiritual mentor of Mahatma Gandhi. Rajchandra had a tremendous and formative influence on the Father of the Nation. “Such was the man who captivated my heart in religious matters as no other man ever has till now.” (Mahatma Gandhi on Shrimad Rajchandra - Modern Review, June 1930). This is how Gandhi was enthralled by the metaphysical vision of Srimad. One can find several mentions of Srimad in Gandhi’s correspondences and writings, this asserts the ingrained influence that Rajchandra’s personality exerted on Mahatma’s life. Mohandas Karamchand Gandhi, the person who himself influenced a sea of people worldwide in the most colossal way and still holds the same place in the hearts of the millions, acknowledged Srimad Rajchandra as one of those luminaries who had the greatest impact on his inner side.

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में स्त्री को अत्यंत उच्च स्थान दिया गया है। ‘यत्र नारी पूज्यते’ की अवधारणा प्राचीन काल से हमारे देश में विद्यमान रही है। हिंदी काव्य में, आदिकाल से होते हुए आधुनिक काल तक, स्त्री के प्रति भारतीय समाज में परिवर्तित दृष्टिकोण हिंदी कवियों के द्वारा अपनी लेखनी के माध्यम से अत्यंत सटीकता से उकेरा गया और हिंदी साहित्य के इतिहास के सभी कालों में स्त्री का नित परिवर्तित स्वरूप दृष्टिगत होता है। आधुनिक काल के उद्भव के पश्चात स्त्री के प्रति दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन और उसके सांगोपांग स्वरूप का चित्र दिखाई देता है जहाँ उसे देवी, मां, सहचरी, प्राण के रूप में दर्शाना आरंभ हुआ और अंततः प्रगतिवाद ने तो स्त्री को मानवतावाद के उच्चतम शिखर पर प्रस्थापित किया।

भारत देश के आदिवासी लोगों का जननायक एवं पहला सरदार स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बिरसा मुंडा की पहचान है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में बिरसा मुंडा के नेतृत्व ने यह निष्कर्ष निकाला था कि उनके दुःख और वेदना का मूल कारण ब्रिटिश साम्राज्य है। 19वीं सदी में संपूर्ण छोटा नागपुर अंग्रेजों और जमींदारों की गुलामी में जकडा हुआ था। इस स्थिति को देखते हुए बिरसा ने आदिवासी बंधुओं की संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए आवाज उठायी और बढते जुल्म पर आवाज उठाकर अपने कौम के अस्तित्व को बचाया। भारत के धरती आबा बिरसा मुंडा की जीवन संघर्ष गाथा है। ब्रिटिश साम्राज्य के सामने कभी भी न झुकनेवाले योद्धा के रूप में उन्हें देखा जाता है और आदिवासियों के मानवी अधिकारों एवं हक का मुद्दा, महिला सशक्तिकरण, गरीबी, अल्प विकास, अंधविश्वास और आदिवासियों के शोषण को उजागर किया और तीसरी धारा का प्रतिनिधीत्व आदिवासी महिलाओं को बिरसा आंदोलन में सम्मिलित किया। आदिवासी महिला पीढी के लिए एक प्रेरणास्रोत का कार्य किया। बिरसा मुंडा ने पुरे आदिवासी समाज का पथ प्रदर्शन का कार्य किया है। बिरसा के नेतृत्व ने आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए लडने की प्रेरणा दी। वह चिंगारी आज भी हर आदिवासी के दिल में सुलग रही है। यह नयी पीढी के लिए प्रेरणादायी रहेगी और बिरसा मुंडा को एक महान समाज सुधारक, रचनात्मक प्रतिभा के धनी और इन सबसे अधिक एक उत्साही राष्ट्रवादी और राष्ट्रीय नेताओं की श्रेणी में लाकर उनको खडा कर दिया। वह पहले आदिवासी क्रांतिकारी और सारे भारत वर्ष में आदिवासी लोगों के जननायक एवं लोकनायक के रूप में पहचान बनाने वाले एक प्रभावी नेता के रूप में जाने जाते है।

मीडिया हमारे चारों ओर मौजूद है। पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो एवं दूरदर्शन ने समाज कों हमेशा प्रभावित किया हैं। विश्व के प्रगतिशील विचारों वाले देशों में जनमाध्‍यम की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
देश की आजादी के दौरान पत्रकारिता ने मिशन के रूप में काम किया। सैनिकों तक सन्देश पहुचाने में जनमाध्यम उपयोगी होते हैं। संकट के क्षणों में जनमाध्यम ने अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट किया है। बाढ़, भूकंप, तूफान, रेल, बस, आगजनी, दंगा, लूटपात, आंदोलन जैसी दुर्घटनाओं में रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर पल-पल की जानकारी देते हैं। भारत में नारी-सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, पर्यावरण, दहेज उन्मूलन, स्वच्छता अभियान, अपराध, भ्रष्टाचार, मानवाधिकार जैसे मुद्दे मीडिया में प्रखरता से उठाए जाते हैं। जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती मिल रही है।

आधुनिक विचारक देरीदा पवर्तित 'विखण्‍डनवाद' साहित्‍य सिद्धान्‍त का नवीनतम आयाम है। देरीदा मूलत: भाषा वैज्ञानिक हैं, उनके विचारों के केन्‍द्र में भाषा है। इन्‍होंने किसी पाठ की अंतर्पाठीयता को केन्‍द्र में रखते हुए आलोचना की भाषा को साहित्‍य सृजन की भाषा के समांतर स्‍थापित करते हुए पुनर्सृजन मानाा। प्रस्‍तुत शोध आलेख में विखण्‍डनावाद के आयामों की संक्षिप्‍त गवेषणा की गयी है।

Anthony Chloe Wofford (Toni Morrison) has a epic power to depicting the plight of black woman in post modern scenario and hence the inseparable part of literary backdrop. The feather in her cap is Noble Prize of 1993, awarded for the magnum opus ‘The Beloved Trilogy’ is the cradle of immense potential, both for scholars and social analysts. Paradox is evident in all classes but further accentuated when doubled by sex and race. Similarly Dalit Literature is a mirror image to societal hatred faced by dalit women, pictured in the pioneering works of Theyri Sumangala and Purnima Daasi . Afro-American Literature is no way different in the aspects of exploitation and making the black woman unspoken since ages. Feminism without borders leads to the realization of similar agony and suffering among the women of various ethnic groups and cultures. Being an oppressed self as a victim of discrimination on color scales is exponentially increased by the challenges of being a ‘woman’.

Paradox is evident in all classes but further accentuated when doubled by sex and race. Similarly Dalit Literature is a mirror image to societal hatred faced by dalit women, pictured in the pioneering works of Theyri Sumangala and Purnima Daasi . Afro-American Literature is no way different in the aspects of exploitation and making the black woman unspoken since ages.

Anthony Chloe Wofford (Toni Morrison) has a epic power to depicting the plight of black woman in post modern scenario and hence the inseparable part of literary backdrop. The feather in her cap is Noble Prize of 1993, awarded for the magnum opus ‘The Beloved Trilogy’ is the cradle of immense potential, both for scholars and social analysts.

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4. भारत में समाज विज्ञान एवम मानविकी की शोध पत्रिकांए शोध के स्तर को बढाने में निम्न सामर्थ्य रखतीं हैं-
 
5. भारतीय विश्वविद्यालयों में मानविकी एवं सामाजिक विज्ञानं के अधिकांश शोध हैं –
 
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