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Vol.8, Issue 1

SHODH SANCHAYAN

 

Vol.8, Issue.1, 15 Jan, 2017

ISSN  2249 – 9180 (Online)

Bilingual (Hindi & English)
Half Yearly

Print & Online

Dedicated to interdisciplinary Research of Humanities & Social Science

An Open Access INTERNATIONALLY INDEXED PEER REVIEWED REFEREED RESEARCH JOURNAL and a complete Periodical dedicated to Humanities & Social Science Research.

मानविकी एवं समाज विज्ञान के मौलिक एवं अंतरानुशासनात्मक शोध पर  केन्द्रित (हिंदी और अंग्रेजी)

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Index/अनुक्रम

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The country of knowledge society, India is known for Nalanda, Takshshila University in the ancient  world. Higher Education in india is now facing various problems. The article gives a critical analysis of the present scenario  of Higher Education in India.

शिक्षा विषयक चिन्तन में श्रीमाँ मिर्रा अल्फासा का योगदान अप्रतिम है। महर्षि अरविन्द की शिष्या श्रीमाँ फ्रांसीसी मूल की भारतीय अध्यात्मिक गुरु थीं। इन्हें श्रीअरविन्द माता कहकर पुकारा करते थे। प्रस्तुत शोध आलेख में श्रीमाँ के शिक्षा विषयक चिन्तन को अन्वेषित करने का प्रयास है।

आधुनिक समाज का प्रभाव जनजाति पर स्पष्‍ट दिखायी पड़ता है। इस शोध आलेख में इस प्रभाव की विवेचना की गई है।बोक्सा जनजाति आधुनिक चकाचौंध के प्रभाव व शेष समाज से सम्पर्कों के कारण बदलावों की ओर अग्रसर है। आधुनिक बदलावों ने जहां जनजाति की परम्पराओं को प्रभावित किया है वहीं उनके जनजातीय जीवन में भी इसके कारण परिवर्तन आए हैं।

किसी भी समाज के विकास के लिए शिक्षा सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण कारक है। शिक्षा के विकास के साथ समाज के सर्वांगीण विकास की संभावनाएं परिलक्षित होता है। प्रत्येक समाज में औपचारिक शिक्षा विकास की गति का निर्धारण करती है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति परम्पराओं से हटकर व्यवसाय चयन की कुशलता प्राप्त करता है। प्रस्तुत शोध पत्र की प्रविधि गुणात्मक एवं गणनात्मक तथ्यों पर आधरित है इसके साथ ही द्वितीय श्रोतों से भी तथ्यों का संकलन एवं सत्यापन किया गया है।

बाल साहित्य के विराट संसार में ऐसी अनेक कविताएँ, कहानियाँ एवं उपन्यास हैं जो पर्यावरण का स्वरूप स्पष्ट करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की चेतना भी जाग्रत करती हैं। प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य, पर्यावरण के प्रति चिंतनशील बनाने वाली बालकविताओं के माध्यम से, अभिभावकों का ध्यान बालोपयोगी साहित्य की ओर आकृष्ट करना है। ताकि वे अपने पाल्यों को ही नहीं, अन्य बच्चो को भी बालमन के अनुरूप पुस्तकें भेंट करके, अध्ययन के प्रति उनकी अभिरुचि जाग्रत कर सकें। यदि बाल्यकाल से ही बच्चों को बालमनोनुरूप साहित्य पढ़कर सुनाया जाए अथवा पढ़ने को दिया जाए तो भविष्य में उन्हें उन सामाजिक तथा पर्यावरणिक समस्याओं से नहीं जूझना पड़ेगा, जिनसे हम और हमारा समाज आज, जूझ रहा है।

औद्योगिक क्रान्ति की नकारात्मक परिस्थियों से समाजवादी विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ। पूरी दुनिया में पूँजीवाद के कारण बढ़ रही विषमता को मिटाने के लिए समाजवाद की ओर बड़ी आशा भरी नजरों से देखा गया। भारतीय आर्य चितंन में समाजवादी विचारों के अंतःसूत्र और बीज बिखरे पडे हैं। राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायन जैसे नेताओं ने समाजवाद को भारतीय भाष्य प्रस्तुत किया। किन्तु पिछले साठ वर्षों की विचारयात्रा में समाजवाद पर तरह-तरह के प्रश्न खड़े हुए हैं। प्रस्तुत शोध आलेख में भारतीय समाजवाद की प्रासंगिकता के विभिन्न आयामों को उद्घटित करने का प्रयत्न है।

औद्योगिक क्रान्ति की नकारात्मक परिस्थियों से समाजवादी विचारधारा का पादुर्भाव हुआ। पूरी दुनिया में पूँजीवाद के कारण बढ़ रही विषमता को मिटाने के लिए समाजवाद की ओर बड़ी आशा भरी नजरों से देखा गया। भारतीय आर्य चितंन में समाजवादी विचारों के अंतःसूत्र और बीज बिखरे पडे हैं। राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायन जैसे नेताओं ने समाजवाद को भारतीय भाष्य प्रस्तुत किया। किन्तु पिछले साठ वर्षों की विचारयात्रा में समाजवाद पर तरह-तरह के प्रश्न खड़े हुए हैं। प्रस्तुत शोध आलेख में भारतीय समाजवाद की प्रासंगिकता के विभिन्न आयामों को उद्घटित करने का प्रयत्न है

वर्तमान प्रौद्योगिकी युग के तमाम आविष्कारों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी एक क्रांतिकारी कदम हैं, जो दुनिया की तस्वीर को बदलने में अपनी अहम् भूमिका निभा रही है। आज इसने गाँव और कस्बों में ही नहीं बल्कि देश और दुनिया में अपनी जडे़ फैलाने व दूरियों को पाटने में सक्षम रही है। आईसीटी  महिलाओं को हर तरह की विषम परिस्थितियों से लड़ने, सुख-सुविधाएं मुहैया कराने और एक महिला सशक्त समाज के निर्माण में अहम भूमिका का निर्वहन कर रहीं हैं। यह शोधपत्र सूचना एवम् संचार प्रौद्योगिकी के द्वारा ग्रामीण महिलाओं में आये सशक्तीकरण को दर्शाता है कि उत्तरोत्तर पहले की तुलना में ग्रामीण महिला ज्यादा मजबूत व सशक्त हो कर उभरी है व अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुई हैं।

हिन्दी साहित्य के इतिहास में सन् 1918 ई. से 1936 ई. तक के समय को छायावाद काल माना गया हैं। छायावाद हिन्दी साहित्य का एक ऐसा युग है, जिसको हम अंग्रेजी साहित्य के ‘रोमान्टिसिज्म’ काल के साथ जोड़ कर देख सकते है। इस युग में चार बड़े प्रतिभाशाली कवियों का आविर्भाव हुआ- जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’। इन कवियों की यहीं विशेषता रही है कि प्रकृति के रहस्यमय जगत को, जिसे दृष्टिपात करने पर निर्जीवता प्रतीत होती है, उसमें सजीवता का वर्णन किया। या यूँ कहें कि छायावादी कवियों ने प्रकृति का ‘मानवीकरण’ किया। छायावादी कवि पंत जी ने प्रकृति को जिस रूप वर्णन किया है वह पाठकों के लिए वरदान स्वरूप है। कवि ने अपनी जीवन की सम्पूर्ण भावनाओं को कवि कर्म के प्रति समर्पित कर दिया था। प्रकृति के प्रति उनका जो लगाव है वह और कवियों में कम पाया जाता है।

The paper is based on the vicious game of color, active since ages, oppressing and dominating the Black psyche so deeply that color and absence of it makes one more acceptable or alienable not only to the society but to their own selves too. Referring to that it deals with the Toni Morrison’s first novel, The Bluest Eye (1970), focusing on the inner turmoil due to racism and cultural politics. The politics of Dick and Jane primer is explored to expose the trauma deliberately inflicted by the dominant white society on the black children who consequently grow into fragmented beings. The paper studies the devastating repercussions of the beauty standards of the dominant culture on the self-image of the African females of all ages particularly adolescence.

“Jhansi Ki Rani” and Testimony of Sugunamma in the book “We Were Making History…” are similar attempts by women writers who have tried to retrieve the struggle of women in the Indian freedom struggle and Telangana People’s struggle respectively.  The uniqueness of both the texts is that they not only increase women’s visibility as warriors but also as writers as both the texts are written by women. This paper makes a comparison of the warrior image of Jhansi ki Rani and the testimony of Sugunamma, who was a fighter in the Telangana people’s struggle, to explore the gendered images of women in the history.

परिवार ही वह महत्वपूर्ण इकाई है जो व्यक्ति तथा समाज के अंतर्सम्बन्धें की स्थिति तय करता है। सामाजिक रूपरेखीय ढाँचा पारिवारिक दृष्टिकोण से प्रभावित रहता है। अतः भारतीय नारी के संदर्भ में उसके पारिवारिक परिवेश का अध्ययन एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है। जो कि प्रस्तुत लेख का भी विषय है। बीसवीं सदी में देश व दुनिया में हो रहे नारी जागरण से हिन्दी की कथा लेखिकाएँ भी प्रभावित होती रही हैं और उन्होंने भारतीय नारी को केन्द्र में रखकर कुछ अच्छी रचनाएँ भी प्रस्तुत की हैं। प्रस्तुत लेख उन्हीं रचनाओं के आधार पर भारतीय नारी एवं उसकी पारिवारिक परिस्थितियों को समझने का प्रयास है।

सोशल मीडिया अत्यल्प समय में समाज में गहरी पैठ बना चुका है। फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया समाज में अपनी अंतः क्रियात्मक उपस्थिति से ग्लोबल सिटिजनशिप का निर्माण कर रहे हैं। इन माध्यमों का उपयोग कर पर्यटन के लाभ को बहुगुणित किया जा सकता है और इसमें आने वाली बाधओं को दूर किया जा सकता है। प्रस्तुत शोध आलेख पर्यटन में सोशल मीडिया की भूमिका का अन्वेषण करते हुए उसमें संभावित खतरों और चुनौतियों के प्रति हमें सचेत करता है।

भक्तियुगीन कवि कबीर का समाज बोध अत्यंत घना था। कबीर ने संवेदना के धरातल पर समाज के ऐक्य को स्थापित करने की चेष्टा की। सभी प्रकार की सामाजिक विसंगति का गहरा एहसास और भेदभाव के दंश ने कबीर को कुछ अर्थों में अस्वीकार वादी और विद्रोही बना दिया। उनका विद्रोही स्वर, सामाजिक विध्वंस की बजाय एक सामाजिक व्यंग्य का सृजन करता है जो समाज को इन बुराइयों से दूर करने के लिए प्रेरित करता है। प्रस्तुत शोध आलेख कबीर काव्य के इस पक्ष से सामाजिक प्रासंगिकता का एक संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत करता है।

त्रिलोचन शास्त्री का कवि व्यक्तित्व इतना विराट है कि उनकी अन्य विधा का लेखन स्वयं उनकी अवरोध उपस्थित करता है। त्रिलोचन का कहानी संग्रह देशकाल अवधी समाज की संवेदना को इतने गहरे स्तर पर व्यंजित करता है कि यह त्रिलोचन शास्त्री को एक श्रेष्ठ कथाकार सिद्ध करता है। यह शोध आलेख त्रिलोचन शास्त्री के कहानी संग्रह देशकाल में संकलित कहानियाँ की समीक्षा प्रस्तुत करता है।

अशोक चक्रधर ने मंचीय हास्य-व्यंग्य को नए आयाम दिए। अशोक जी अलौकिक प्रतिभा के धनी, श्रेष्ठ कवि और सुधी साहित्य-सृष्टा, सजग शिक्षक और संगीत के प्रेमी हैं। वे कुशल पिफल्म-निर्माता भी हैं। अशोक चक्रधर की बहुआयामी प्रतिभा एवं उनके व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करता है। अपनी कविताओं में व्यंग्य के साथ सहज हास्य उत्पन्न कर व्यक्तियों को गुदगुदाने में चक्रधर जी सिद्धहस्त हैं। उन्होंने पीड़ा को कलम की शक्ति से जनता एवं समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत शोध आलेख  अशोक चक्रधर के बहुआयामी व्यक्तित्व का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

Indiaporic is portmanteau word, formed by combining India and diasporic. Diaspora is a word that signifies people of a certain recial origin the inhabit different areas and territories across the world. Their hearedity is rooted in a certain civilization, India in the case of those who are referred to here, though their environment differs in accordance with their chosen country of residence. This dichotomy of heredity and environment breeds in the diasporic mind a kind of schizophrenia, a confusion of identity.As mentioned earlier, A.K. Ramanujan is a diasporic poet, an Indian expatriate living in America. His poetry is a curious combination of Eastern wisdom and Western skepticism. Being a voice of the Indian diaspora, his poetry is loaded with nostalgia for his lost motherland but the Western enlightenment has sharpened his critical facility.

चुनाव में बढ़ते धन के दुस्प्रभाव को कम करने अथवा रोकने के लिए प्रमुख रूप से क्या उपाय किये गये हैं? निर्वाचन आयोग ने अपने स्तर पर विगत वर्षों में और क्या प्रयास किया है। आचार संहिता द्वारा धनबल के प्रभाव को रोकने के कौन से उपाय किये गये हैं। लगातार शक्ति के बाद भी धनबल का प्रयोग नियंत्रित नहीं किया जा सका है इसके लिए क्या सुझाव है।

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